Prakrit Vyakaranam Part 1
Added to library: September 2, 2025

Summary
यह पुस्तक "प्राकृत व्याकरण", आचार्य हेमचन्द्राचार्य द्वारा रचित मूल ग्रंथ का प्रथम भाग है, जिसका संपादन प. रतनलाल संघवी द्वारा किया गया है और जिसका प्रकाशन 'ZZZ Unknown' द्वारा किया गया है। इस संस्करण में पं. प्यारचन्दजी महाराज द्वारा 'प्रियोदय हिन्दी व्याख्या' प्रस्तुत की गई है, और श्री उधयमुनिजी महाराज (सिद्धांत शास्त्री) ने इसे संयोजित किया है।
पुस्तक का सार:
यह पुस्तक प्राकृत भाषा के व्याकरण का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करती है, जो कि भारतीय साहित्य और भाषा विज्ञान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह आचार्य हेमचन्द्र के मूल ग्रंथ "सिद्ध हेम शब्दानुशासन" का हिस्सा है।
पुस्तक की संरचना और मुख्य बिंदु:
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व्याख्याता का वक्तव्य (Page 3-5): इसमें प्राकृत भाषा के अध्ययन के महत्व और आचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित प्राकृत व्याकरण की प्रामाणिकता पर प्रकाश डाला गया है। बताया गया है कि यह व्याकरण न केवल प्राकृत भाषा के लिए बल्कि आधुनिक भारतीय भाषाओं के मूल को समझने के लिए भी उपयोगी है। इसे कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है।
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संयोजक का प्राक-कथन (Page 5-7): यहाँ आचार्य हेमचन्द्र के जीवन और उनकी विभिन्न कृतियों का विस्तृत परिचय दिया गया है। उनके असाधारण ज्ञान, बहुमुखी प्रतिभा और साहित्य रचना शक्ति का वर्णन किया गया है, जिसके कारण उन्हें 'कलिकाल-सर्वज्ञ' की उपाधि से विभूषित किया गया।
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मूल-सूत्र (Page 8-15):
- प्रथम पाद: यह भाग प्राकृत भाषा के वर्णों, स्वर-व्यञ्जन विकारों, संधि-विधियों, लोप-विधियों, आदेश-विधियों, अनुस्वार-विधान, लिंग-नियमों, और विभिन्न स्वरों के एक-दूसरे में परिवर्तन संबंधी नियमों का विस्तृत विवेचन करता है। इसमें 'अ', 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ', 'लृ', 'ऐ', 'ओ', 'औ' जैसे स्वरों के प्राकृत में होने वाले परिवर्तनों को सूत्रों के माध्यम से समझाया गया है। साथ ही, विभिन्न व्यञ्जनों के लोप और आदेश के नियमों का भी विस्तार से वर्णन है।
- द्वितीय पाद: यह पाद मुख्य रूप से संयुक्त व्यञ्जनों पर केंद्रित है। इसमें संस्कृत के संयुक्त व्यञ्जनों के प्राकृत में होने वाले परिवर्तनों, जैसे 'क्त' का 'क', 'क्ष' का 'ख', 'छ', 'झ', 'न्ध' का 'झा', 'त' का 'ट', 'थ' का 'ढ', 'ण' का 'ण', 'प' का 'फ', 'फ' का 'भ', 'व' का 'म', 'य' का 'ज', 'र' का 'ड' जैसे अनेकानेक परिवर्तन सूत्रों के माध्यम से समझाए गए हैं।
- तृतीय पाद: यह पाद मुख्य रूप से विभक्तियों (नाम-धातु, कशप, उपसर्ग) और सर्वनामों की प्राकृत व्यवस्था पर केंद्रित है। इसमें प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, आदि विभक्तियों के प्राकृत रूपों की सिद्धि, और 'युष्मद्', 'अस्मद्', 'तत्', 'इदम्', 'एतत्', 'किम्' जैसे सर्वनामों के प्राकृत रूपांतरण का विस्तार से वर्णन किया गया है।
- चतुर्थ पाद: यह पाद मुख्य रूप से धातुओं और उनके क्रिया-रूपों की प्राकृत व्यवस्था पर केंद्रित है। इसमें विभिन्न कालों (वर्तमान, भूत, भविष्यत्) और विभिन्न पुरुष-वचनों में धातुओं के होने वाले प्राकृत-रूपान्तरण का विस्तृत विवेचन किया गया है। इसमें 'क्त्वा', 'तुम', 'तव्यत्' जैसे कृदन्त प्रत्ययों के प्राकृत रूपों को भी समझाया गया है।
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सूत्रानुसार-विषयानुक्रमणिका (Page 17-25): यह भाग पुस्तक के प्रथम पाद के नियमों को सूत्र संख्या और विषय के अनुसार सूचीबद्ध करता है, जिससे पाठक को विषय-वस्तु का स्पष्ट अवलोकन प्राप्त होता है।
मुख्य विशेषताएं:
- विस्तृत व्याखया: पुस्तक में प्रत्येक मूल सूत्र के साथ 'प्रियोदय हिन्दी व्याख्या' दी गई है, जो सूत्रों को सरलता से समझने में सहायक है।
- उदाहरणों का समावेश: प्रत्येक नियम को स्पष्ट करने के लिए संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं के उदाहरण दिए गए हैं, जिससे विषय को गहराई से समझने में मदद मिलती है।
- तुलनात्मक अध्ययन: यह पुस्तक संस्कृत व्याकरण के नियमों और प्राकृत व्याकरण के नियमों के बीच तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करती है, जिससे भाषा विकास की प्रक्रिया को समझा जा सके।
- व्याकरणिक सूक्ष्मता: व्याकरण के सूक्ष्म पहलुओं, जैसे कि लोप-विधि, श्रादेश-विधि, द्वित्व, आगम, विकल्प, और अपवाद-विधान को विस्तार से समझाया गया है।
- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व: प्राकृत भाषा के अध्ययन से उस समय के समाज, संस्कृति और साहित्य के बारे में भी जानकारी मिलती है, जो इस पुस्तक के माध्यम से उजागर होती है।
संक्षेप में, "प्राकृत व्याकरण" (भाग १) आचार्य हेमचन्द्राचार्य द्वारा रचित प्राकृत भाषा के व्याकरण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विस्तृत सार प्रस्तुत करता है। हिन्दी व्याख्या के साथ यह पुस्तक उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो प्राकृत भाषा का गहन अध्ययन करना चाहते हैं। यह भाषा विज्ञान, भारतीय साहित्य और जैन धर्म के अध्ययन में रुचि रखने वाले विद्वानों और छात्रों के लिए एक अमूल्य संसाधन है।